Tuesday, November 1, 2011

यदि सरदार पटेल ने दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति न दिखाई होती तो हैदराबाद भी भारत के लिए कश्मीर के जैसा ही हमेशा के लिए सरदर्द बन गया होता

जब पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को भारत परतन्त्रता की बेड़ियों से आजाद हुआ तो उस समय लगभग 562 देशी रियासतें थीं जिन पर ब्रिटिश सरकार का हुकूमत नहीं था। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र अधिकतर रियासतों ने स्वेज्छा से भारत में अपने विलय की स्वीकृति दे दी। जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ का विलय पाकिस्तान में चाहता था। नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणामस्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया। हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय कि स्वीकृति नहीं दी। यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतन्त्रता मिल चुकी थी किन्तु 18 सितम्बर 1948 तक, याने कि पूरे 1 वर्ष, 1 माह और 4 दिन तक हैदराबाद भारत से अलग ही रहा। इस पर तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ कर दिया (यद्यपि वह सैन्य कार्यवाही ही था किन्तु उसे पुलिस कार्यवाही बतलाया गया था जिसका नाम 'ऑपरेशन पोलो' रखा गया था)। भारत की सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।

सरदार पटेल शुरू से ही हैदराबाद पर सैनिक कार्यवाही करना चाहते थे किन्तु तत्कालीन प्रधान मन्त्री जवाहर लाल नेहरू सैनिक कार्यवाही के पक्ष में नहीं थे। उनका विचार था कि सैन्य कार्यवाही के द्वारा हैदराबाद मसले को सुलझाने में पूरा खतरा तथा अन्तर्राष्ट्रीय जटिलताएँ उत्पन्न होने की सम्भावना थी। वे चाहते थे कि हैदराबाद में की जानेवाली सैनिक कार्रवाई को स्थगित कर दिया जाए। तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन भी नेहरू के ही पक्ष में थे। नेहरू की इस असहमति के कारण ही हैदराबाद के ऊपर सैन्य कार्यवाही करने में सरदार पटेल को इतना विलम्ब हुआ। प्रख्यात कांग्रेसी नेता प्रो.एन.जी. रंगा की भी राय थी कि विलंब से की गई कार्रवाई के लिए नेहरू और माउंटबेटन जिम्मेदार हैं। रंगा लिखते हैं कि 'जवाहरलाल नेहरू की सलाहें मान ली होतीं तो हैदराबाद मामला उलझ जाता'।

अब आप ही सोचिए कि यदि सरदार पटेल ने उस समय अपनी दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए सैन्य कार्यवाही नहीं किया होता तो क्या आज हैदराबाद भी कश्मीर की तरह से भारत के लिए हमेशा का सरदर्द नहीं बन गया होता?

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि एक बार सरदार पटेल ने स्वयं श्री एच.वी.कामत को बताया था कि ''यदि जवाहरलाल नेहरू और गोपालस्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो मैं हैदराबाद की तरह ही इस मुद्दे को भी आसानी से देश-हित में सुलझा लेता।"

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जो हुआ वह सामने है, भविष्य तो अपने हाथों में है।

विवेक रस्तोगी said...

पटेल वाकई गृहमंत्री थे और बहुत अच्छॆ से घर को एक किया था। काश कि इस कश्मीर मुद्दे को भी उन्हीं को सुलझाने दिया गया होता । जो अब हमेशा का सरदर्द है। वहाँ तो जनविद्रोह भी नहीं है ।